Sunday, December 16, 2012

कहानी बन कर ...


ये सफर काट दो मौजों की रवानी बन कर
बीत जायेगी उमर एक कहानी बन कर

हसीन मयकदा-ए-इश्क मस्तियाँ-ऒ-शबाब
सब एक बार ही आते है जवानी बन कर

रुखसत-ए-यार के ग़म को भी कहाँ तक सोचें
वो भी कब तक रहेगा आँख का पानी बन कर

इस कदर गम कि घटाओं से न घबरा प्यारे
ये भी बरसेंगे तो बह जायेंगे पानी बन कर

ज़िन्दगी चिलचिलाती धूप के सिवा क्या है
प्यार आता है मगर शाम सुहानी बन कर

आज दुनिया को मेरे जज़्बों की परवाह नहीं
                              ख़ाक हो जाऊँ तो ढूँढेगी दीवानी बन कर........

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