Monday, February 25, 2013

बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें ...

हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं
अलग ही रास्ते फिर आँधी औ’ तूफ़ान लेते हैं

बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना
कहाँ हम भी किसी मगरूर का अहसान लेते हैं

तपिश में धूप की बरसों पिघलते हैं ये पर्वत जब
जरा फिर लुत्फ़ नदियों का ये तब मैदान लेते हैं

हुआ बेटा बड़ा हाक़िम, भला उसको बताना क्या
कि करवट बाप के सीने में कुछ अरमान लेते हैं

हो बीती उम्र शोलों पर ही चलते-दौड़ते जिनकी,
कदम उनके कहाँ कब रास्ते आसान लेते हैं

इशारा वो करें बेशक उधर हल्का-सा भी कोई
इधर हम तो खुदाया का समझ फ़रमान लेते हैं

है ढ़लती शाम जब, तो पूछता है दिन थका-सा रोज
"सितारे डूबते सूरज से क्या सामान लेते हैं?"  ....

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